जउन भी अपन मातृभाषा म बोलथें वोखर उपर मोला गर्व होथे । जउन अपन मातृभाषा ल बोलब म लजाथे, संकोच करथे या हीन भावना के अनुभव करथे वोहर मातृद्रोही हे ओखर बर समाज म कोनो स्थान नई होना चाही । वोखर बहिष्कार होना चाही ।
महात्मा गांधी जी हर लिखे रहिस – ‘मेरी मातृभाषा में कितनी ही खामियां क्यों न हो, मैं उससे उसी तरह चिपटा रहूँगा, जिस तरह अपनी मॉं की छाती से । वही मुझे जीवनदायी दूध दे सकती है ।’ अपन मातृभाषा के प्रति हमर का दृष्टिकोण होना चाही, ये बात के शिक्षा हमला गांधी जी के कथन से सीखना चाही ।
कमी या खामी कोन भाषा म नई होवय ? जइसे हमर महतारी म कोनों बात के कमी या खामी हे तो का वोला हम छोड देबो ? हमर महतारी चाहे कतको गरीब हो, बीमार हो, वोला हम नई छोड सकन, वोकर सेवा से मुंह नई मोडे सकन, वइसनहे अपन मातृभाषा म कतको कमजोरी होवय, वोला नई छोडना चाही । बल्कि ये कोशिस करना चाही कि वोखर कमजोरी, कमी या खामी ह जलदी से जलदी दूर हो जाए । मातृभाषा के वोही दर्जा हे जउन महतारी के होथे । ते पाए के जइसे असली सपूत हर अपन महतारी के पूरा लगन अउ इमानदारी से सेवा करथे, वइसनहे हमला अपन मातृभाषा छत्तीसगढी के सेवा करना चाही । हमर मातृभाषा ल हमर सेवा के जरूरत हे ।
मोर महतारी के दूध के संग जउन संस्कार मोला मिले हे वोही संस्कार ल लेके मैं पले बढे हौं । मोर मातृभाषा छत्तीसगढी घलो वोही संस्कार के देन आय । बचपन म खेलत-खावत जउन भाषा ल बोलेंव अउ सुनेंव, वोह छत्तीसगढी च आय । आज मैं बडे हो गयेंव त का मोर मातृभाषा छोटे होगे ? चाहे मैं कतको बडे हो जांवव, अपन मातृभाषा के आघू छोटेच रहिहूं । महतारी के आघू वोखर लईका हर बुढुवा के होवत ले लइकाच रहिथे । अपन मातृभाषा के बडप्पन म हमर बडप्पन हे । जउन अपन मातृभाषा के बडप्पन ल नइ राखे सकै वोखर ले नीच कौन होही ?
हमर जतका भी संस्कार गीत हे, जम्मो हमर मातृभाषा म हे । ये संस्कार गीत हमला आने भाषा म थोरे मिलही ! हमर मातृभाषा हर ये संस्कार गीत मन ल हमर बर मोटरी म सकेल के बड जतन से राखे हवय । वोहर हमर थाती आय । हमर लोक-संस्कार हमर मातृभाषा के अंचरा म बंधाए हवय । अगर हम अपन मातृभाषा से विमुख होबो तो अपन लोक-परंपरा अउ लोक संस्कार से विमुख हो जाबो तो हमर का पहिचान रहि जाही ? हमर मातृभाषा के माध्यम से ही हमर पहिचान ह बाचें हे । मातृभाषा छत्तीसगढी के अस्तित्व उपर हमर पहिचान ह निर्भर हे । मातृभाषा छत्तीसगढी के अस्तित्व के उपर भारी संकट हे । वो संकट ल टारे बर हमला जुझारू बनके आघू बढना परही ।
हमला आने कोनों भाषा से विरोध या शिकायत नइये । सबला अपन-अपन बोली-भाखा बोले के अधिकार हे । हम सबो भाषा के आदर करथन, अतका उदारता हमर म हे । लेकिन, हम चाहथन कि हमरो मातृभाषा के उन आदर करंय । राख पत त रखा पत । दुनों हांथ म ताली बजथे । कोनो हमर मातृभाषा ल हीनैं अउ हम उंखर भाषा के गुन गावंन, ये नई हो सकय ।
जईसे सबला अपन मातृभाषा लिखे-बोले के अधिकार हे, वइसनहे हमू ला अपन मातृभाषा म लिखे अउ बोले के अधिकार हे । लेकिन ये अधिकार ल सार्वजनिक रूप म स्थापित करना परही । वोला सार्वजनिक रूप से मान्यता देवाय ल परही । हमला अधिकार पूर्वक अपन मातृभाषा ल सार्वजनिक रूप से लिखना अउ बोलना चाही । जब तक अइसे नई करबोन छत्तीसगढी भाषा के विकास नई होय सकय । जेखर मन म अपन मातृभाषा के प्रति प्रेम के भावना नई ये, वोखर जीवन पशु के समान हे, अइसन विद्वान मन के कहना हे ।
कोनों आर्थिक या भौतिक लाभ के सेती हम अपन मातृभाषा में लिखन या बोलन, अइसे नई होना चाही । का हम अपन महतारी से एकर बर मया करथन कि वोकर तीर गजब अकन गहना-गांठा अउ जमीन जायजाद हे ? वो अइसने हमला अपन मातृभाषा से घलो ‘फल के आसा’ छोड के मया अउ सेवा करना चाही । जइसे महतारी के दूध के रिन हर सपूत ल चुकाये बर परथे वइसनहे मातृभाषा के रिन ल घलो चुकाए बर परथे । ये रिन ल चुकाये बिना जउन जीयत हे, वोखर जीना हराम हे ।
पालेश्वर शर्मा